आचार्य शिवपूजन सहाय का 'वागीश्वरी पुस्तकालय': एक प्रसंग
इसके पिछले पोस्ट में जिस पुस्तकालय के पुराने भवन को आपने देखा उसकी पूरी कहानी भी इस ब्लॉग के पिछले पोस्टों में आप पढ़ सकते हैं. अब उसी पुस्तकालय और पुराने मकान को तोड़ कर उसी स्थान पर एक स्मारक भवन निर्माण करने की योजना है. आ. शिव के पाठक और प्रशंसक उसमें कोष-दान देकर अपनी साहित्य-सहृदयता अवश्य प्रकट करेंगे ऐसी आशा है. इस तरह की एक अपील पिछले पोस्ट में दी भी गयी है. उसकी पूरी योजना भी यहाँ देखी जा सकती है |
आज इस पोस्ट में उसी पुस्तकालय से जुड़ा एक प्रसंग जो ८० के दशक में घटित हुआ था. और जिसके प्रमुख नायक थे श्री कैलाश चन्द्र झा, उनका एक भाषण आज पटना में बिहार कॉन्क्लेव, मौर्या होटल में हुआ जिसका एक विडियो और कुछ चित्र यहाँ दिए जा रहे हैं. श्री झा ने वह कहानी बताई कि कैसे वे अमेरिका दूतावास में काम कर रहे थे और उस समय अमेरिका की लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस की दक्षिण एशिया की एक दुर्लभ साहित्यिक संग्रहों की सुरक्षा का एक अभियान चला था जिसके अंतर्गत उन्होंने 'वागीश्वरी पुस्तकालय' की पत्र-पत्रिकाओं का उद्धार कराया था जो वहां बंद पुस्तकालय में नष्ट हो रही थीं |उसमें केवल मासिक और साहित्यिक पत्रिकाओं को ही दिल्ली ले जाया गया था - २० बड़े बोरों में सिलकर गाँव से बक्सर बैलगाड़ी पर और वहां से ट्रेन से बुक करके दिल्ली तक.यह सारा काम श्री झा के सहयोग और देख-रेख में ही हुआ था. दिल्ली दूतावास में सभी पत्रिकाओं की मिक्रोफिशिंग हुई थी (जिसका कुछ ब्यौरा इसी ब्लॉग पर पहले दिया जा चुका है.) फिर उन मिक्रोफिशेज़ की एक प्रति लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस वाशिंगटन (अमेरिका) में रखी और दूसरी डोनर कॉपी यहाँ नेहरु मेमोरियल लाइब्रेरी में रखी गयी. इन सभी पत्रिकाओं के सभी अंकों के प्रति पृष्ठ को वहां जाकर पढ़ा जा सकता है, जिसे अमेरिका के शोधकर्त्ताओं के लिए वहां उपलब्ध है. बाद में अमेरिकी दूतावास ने इन पत्रिकाओं की मूल फाइलों की भी सुन्दर जिल्दबंदी करे हमें लौटा दिया जिसे भी न्यास ने फिर ने.मे.ला. में ही रखवा दिया जहाँ अनेक शोधकर्त्ता अब उनका लाभ उठा रहे हैं. ने.मे.ला. में इसके साथ आ. शिवजी की दुर्लभ पुस्तकें भी संगृहीत है, लेकिन जिनका बडा हिस्सा अब पटना के गाँधी संग्रहालय में शोधार्थियों के लिए उपलब्ध है. हिंदी के किसी साहित्यकार के संग्रह का इतना बड़ा संरक्षण शायद ही और किसी संस्था के द्वारा किया गया है. हिंदी-संसार में खेद है इसकी चेतना आज भी बहुत विकसित नहीं हो सकी है. इस प्रसंग में श्री झा के प्रति न्यास पर्याप्त आभार व्यक्त करने में समर्थ ही नहीं है. यदि इस भाषण का पूरा विडियो मिल सका तो हम उसे अपने युटयूब चैनल vagishwarimurty,com पर भी दर्शकों के लिए डालेंगे. इसी प्रसंग में हम न्यास की अगली बैठक जो होगि१०.१२.२३ को गाँधी संग्परहालय पटना में श्री झा को विशेष रूप से सम्मानित करेंगे और उनके न्यास के विशिष्ट सदस्य के रूप में मनोनीत भी करेंगे. आप से अनुरोध है की न्यास के इस ब्लॉग को इसकी गतिविधियों के लिए समय-समय पर अवश्य देखते रहें
श्री झा बीच में बैठे हैं. इस प्रसंग के कुछ और पुराने चित्र भी आप शीघ्र यहाँ देख सकेंगे.
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