Friday, May 7, 2021

ध्यान दें:कृपया पता में : H-302 के स्थान पर H-701 कर लें तथा शिवपूजन सहाय के साहित्य से सम्बद्ध दो ब्लागों को भी अवश्य देखें :

                        vibhutimurty.blogspot.com 

                        vagishwari.blogspot.com

 

वागीश्वरी पुस्तकालय : शती-प्रसंग 

यहाँ पूर्व के विवरणों में वागीश्वरी पुस्तकालय(उनवांस) की चर्चा हुई है | आ. शिवजी का साहित्यिक जीवन 'मारवाड़ी सुधार' के सम्पादन के साथ १९२१ में शुरू हुआ था - आज से ठीक १०० साल पहले | अपने छात्र-जीवन और स्कूल-अध्यापन के क्रम में उनका लेखकीय जीवन तो १९१० से ही प्रारम्भ हो चुका था | आरा की नागरी प्रचारिणी सभा से उनका सम्बन्ध भी उसी समय से बन गया था | पुस्तकें और पत्रिकाएं ही अब उनके साहित्यिक जीवन का उपजीव्य बन चुकी थीं | विवाह उनका १९०८ में ही हो चुका था पत्नी गाँव पर ही रहती थीं | गाँव से सम्बन्ध बना रहता था |घर की खेती-बारी उनके छोटे भाई रामपूजन लाल देखते थे (नि.१९३०) | इसी समय १९२१ में रामनवमी तिथि (ल.अप्रैल) को उन्होंने अपने स्व.पिता और माता - श्री वागीश्वरी दयाल और श्रीमती राजकुमारी देवी की स्मृति में अपने छोटे से पुस्तकालय की स्थापना की | आज इस स्थापना दिवस के सौ साल पूरे हो चुके हैं | इस पुस्तकालय में उनका पुस्तकों-पत्रिकाओं का संग्रह निरंतर चलता रहा, और पुस्तकों-पत्रिकाओं की संख्या में निरंतर वृद्धि होती रही | उस समय तो पुस्तकों के रख-रखाव की व्यवस्था जैसे-तैसे रही लेकिन जब वे छपरा कॉलेज में आये तब उन्होंने कुछ आलमारियाँ पुस्तकों के लिए बनवाईं |  (इन में ४ आलमारियां राजेन्द्र  बाबू ने भिजवायीं थीं जिन्हें शिवजी ने 'आत्मकथा' के सम्पादन के पुरस्कार-स्वरुप स्वीकार किया था, और ये ४ आलमारियां आज भी पटना में हमारे पुँनाई चक निवास में सुरक्षित हैं जहाँ आ. शिवपूजन सहाय शोध संस्थान बनाने की योजना है)| उस समय (१९४८ में) मेरी अवस्था १० वर्ष के लगभग थी | मुझे याद है तब पुस्तकालय का कोई रूप नहीं बना था | बाबूजी जब १९५० में पटना आ गए तब १९५२-५३ में पुस्तकालय का वह भवन बना ( जो मेरी देख-रेख में ही बना ) जिसकी तस्वीर यहाँ लगी है, और हाल में जिसे स्मारक-निर्माण के लिए जर्जर होजाने के कारण ढहा दिया गया था | इस ब्लॉग पर पहले वह कहानी आ चुकी है | १९५२ से '६२ तक लगातार मुझ पर इस पुस्तकालय की जिम्मेवारी बनी रही, और पहले सार्वजनिक रूप से खुला रखने के कारण इसमें की बहुत सी पुस्तकें गायब होती रहीं | लेकिन १९५५ के बाद मैंने इसे तालाबंद रखा, केवल जाने पर ही कुछ दिन के लिए इसे खोलता था | इस कारण ज़्यादातर पुस्तकें सुरक्षित रहीं | पत्रिकाओं को लोग नहीं लेते थे | 

इसी समय अमेरिकन दूतावास के श्री कैलाशचंद्र झा आये जिनके  सौजन्य से सारी पत्रिकाएं दिल्ली दूतावास में गयी और उनका माइक्रोफिश तैयार हुआ (देखे पूर्व विवरण)| उसके बाद मैं मुंगेर कॉलेज की अपनी नौकरी में व्यस्त हो गया और पुस्तकालय बंद रहने के कारण पुस्तकें खराब होने लगीं | तब बहुत बाद में उन पुस्तकों  को पहले बक्सर के राजकीय पुस्तकालय में रखा गया, लेकिन वहां भी व्यवस्था ठीक नहीं होने से अंततः इनको पटना के गांधी संग्रहालय में ला कर रखा गया | इसका विवरण इसी ब्लॉग पर पहले दिया गया है जिसे आज पढ़ा जा सकता है |

वागीश्वरी प्पुस्ताकालय का यह शती-वर्ष है | कोरोना काल में इसके लिए कोई आयोजन तो संभव नहीं था, किन्तु आज इस ब्लॉग पर एक विडियो लगा कर श्री वागीश्वरी दयाल और श्रीमती राजकुमारी देवी का पुण्य-स्मरण किया जा रहा है जिनकी पावन स्मृति इस पुस्तक-संग्रह के रूप में अब गांधीजी के  नाम पर स्थापित इस पवित्र संस्था के साथ सुरक्षित हो गई है | इस संग्रह में लगभग ४००० पुरानी दुर्लभ पुस्तकें हैं, जिनके साथ आ. शिवजी की स्मृति जुडी हुई है और अब यह संग्रह बिहार के छात्रों-शोधार्थियों  के लिए सुलभ और सुरक्षित है | इतना बहुमूल्य और सुलभ-सुरक्षित शायद ही कोई और संग्रह बिहार में कहीं है |  जैसा नीचे के विवरणों में लिखा गया है, पत्रिकाओं की सभी जिल्दबंद फाइलें पहले ही नेहरु मेमोरियल पुस्तकालय में सुरक्षित रखी जा चुकी हैं |  इस संग्रह से सम्बद्ध कुछ और विवरण समयानुसार आप यहाँ पढ़ सकेंगे | 


चित्रादी कॉपी राईट : आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास  


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