रिपोर्ट
स्मरण : आ. शिवपूजन सहाय
विगत २१ जनवरी, २०२१ को 'शिवपूजन
सहाय की देहाती दुनिया' वेबिनार में उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'देहाती दुनिया' के व्यापक परिप्र्येक्ष में उस
वृहत्तर भारतीय ग्राम्यांचल की उपेक्षा और समस्याओं की किंचित विस्तार से चर्चा
हुई | आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष
एवं बिहार विद्यापीठ, पटना के अध्यक्ष श्रीविजय प्रकाश ने
वेबिनार की प्रस्तावना में इस व्यापक विषय पर प्रकाश डाला | ख्यात
पत्रकार-लेखिका गीताश्री ने गांधी और आ. शिव को इस प्रसंग में सहयात्री के रूप में
याद किया | इस प्रसंग में शिवजी की ४० के दशक में लिखी
पुस्तक 'ग्राम-सुधार' की भी विषद चर्चा
हुई | का. हिन्दू विवि के डा. प्रभात मिश्र ने ' देहाती दुनिया' को अपने समय (२० के दशक) में लिखा
गया अन्यतम उपन्यास बताते हुए उसके भाषा-शिल्प पर सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया |
अंत में न्यास-सचिव डा. मंगलमूर्ति ने आ. शिव के ग्राम्य-चिंतन पर
उनकी डायरी से एक सुन्दर उद्धरण पढ़ कर सुनाया जिसे आप यहाँ उसकी पूर्णता में पढ़ सकते हैं | इस ब्लॉग पर आप न्यास की
गतिविधियों से भी परिचित हो सकते हैं |
व्यक्तित्त्व का सच्चा मूल्यांकन है कीर्ति का विस्तार|"
यह उक्ति आ. शिव के साहित्यिक व्यक्तित्त्व पर उसी प्रकार
लागू होती है | वे
ऐसे हिंदी-सेवी थे जिनकी साहित्य-सेवा को लोग सदा इसी तरह याद करते रहेंगे क्योंकि
हिंदी में वैसे संत-साहित्यकार बिरले ही हुए |
आ. शिवजी की पुस्तक ‘ग्राम-सुधार’ में महात्मा गांधी के
प्रकल्पित ग्रामोत्थान की विषद व्याख्या है | उनकी डायरियों में भी बहुधा
ग्रामोत्थान की उनकी अपनी कल्पना भी आख्यायित हुई है | इस श्रृंखला में आ. शिव के
ग्राम्य-चिंतन की कुछ और सामग्री आप हमारे दूसरे ब्लॉग – vagishwari.blogspot.com पर आगे भी पढ़ सकते हैं | उसी प्रस्तावित श्रृंखला की पहली कड़ी जो
उपर्युक्त वेबिनार में पढ़ी गई थी यहाँ
उद्धृत है –
श्रीरामजी की दया होगी तो अपने गाँव में एक
साहित्य-विद्यालय खोलूँगा | उसमें उद्योग-धंधे की शिक्षा भी दी जाएगी | चरखा-करघा
भी रखूंगा | संस्कृत भाषा भी पढ़ाई जाएगी | तुलसी की रामायण भी पढ़ाई जाएगी |
व्यावहारिक इतिहास भूगोल भी | अपने गाँव में एक श्रीराम विद्यालय स्थापित करके
हिंदी के साहित्य का पठन-पाठन करने में ही अपने जीवन के अंतिम दिन बिताऊंगा |
उजियार के पिंड वाले खेतों में आश्रम रहेगान वहां चरखा-संघ और ग्रामोद्योग-संघ की
शाखाएं भी रहेंगीं | संस्कृत और हिंदी की परीक्षाओं के केंद्र भी खोलूँगा |
रामायण-गीता परीक्षाएं भी होंगी | गाँव में शिक्षा की ज्योति फैलाऊंगा | गोरक्षा
और गो-पालन भी साथ ही होगा | उस संस्था को स्थाई करके भारत भ्रमण करूंगा | सभी
प्रमुख साहित्य-सेवियों के पास जाकर उनके दर्शन करूंगा | श्रीराम विद्यालय से
वागीश्वरी नामक मासिक पत्रिका निकालूँगा | उसमें केवल साहित्यिक बातें रहेंगी |
श्रीराम विद्यालय में मैं ही साहित्य और सम्पादन कला की
शिक्षा दूंगा | साहित्य के ग्रंथों को पढ़ना और पढ़ाना यही नित्य कर्म होगा | इस
विद्यालय में प्रति पूर्णिमा को श्री सत्य नारायणजी की कथा हुआ करेगी, और प्रति
एकादशी को गीता पाठ तथा नित्य हवन भी | चरखा संघ, ग्रामोद्योग संघ, गौशाला,
औषधालय, वाचनालय, पुस्तकालय, दुग्धालय, चित्रशाला, संग्रहालय सब कुछ रहेगा | सबके
लिए स्वतंत्र भवन, सादगी सर्वत्र, लता-पुष्प एवं पुष्प-वृक्षादि की हरियाली,
कृषि-व्यापार का शिक्षण विशेष रूप से दिया जायेगा | एक यज्ञ-शाळा रहेगी जिसमें
प्रायः हवन हुआ करेगा | नित्य थोडा-घना हवन होता ही रहेगा | हवन का कुंड भी पक्का
और मंडप-भवन भी पक्का | चारों और फूल-फल
के वृक्ष | वृक्षों की छाया मेंही पढ़ाई होगी | सद्भाव, सत्य, आश्रण-जीवन का पवित्र
आदर्श रहेगा |”
- शिवपूजन सहाय की डायरी (१९४०-) से उद्धृत |
(C)मंगलमूर्ति | चित्र : ऊपर: आ. शिव के उनवांस (जन्म-ग्राम) के सटे पूरब कोचान नदी और (नीचे) उसी रास्ते में पड़ने वाला शिव मंदिर जहाँ उनके बचपन में जगेसर माली ने उनमें शिव-पूजा का प्रेम उत्पन्न किया |